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हिन्देश यादव:-लोकतंत्र में मतदाता ‘मालिक’ है,इसलिए निर्भय होकर मतदान जरुर कीजिए…मतदाताओ में जागरुकता लाने का मंशा से हिन्देश यादव का विशेष लेख hkp24news.com में जरुर पढिए…

हिन्देश यादव(एचकेपी 24 न्यूज)।भारत का लोकतंत्र यहां के मतदाताओं के निर्णय पर टिका है। लोकतंत्र में मतदाता मालिक है। मतदाता प्रत्यक्ष मतदान करे या अप्रत्यक्ष मालिक मतदाता को ही माना जाता है।लेकिन दुर्भाग्य है कि मतदाता सिर्फ चुनाव तक मालिक रहता है। चुनाव के बाद चुना हुआ प्रतिनिधि मालिक बन जाता है।जबकि चुनाव के बाद चुने हुए प्रतिनिधि को ‘जन सेवक’ की भूमिका निभानी चाहिए।लोकतंत्र मतदाता और चुने हुए प्रतिनिधि के विश्वास पर टिका है।।संसद सदस्य सांसद जनता के सेवक और संविधान के संरक्षक हैं। लोकतंत्र के पहरेदार हैं।चुनाव सरकार को संवैधानिक मान्यता प्रदान करते हैं।चुनाव चुनी हुई सरकार की कार्यप्रणाली पर अपनी मोहर लगाते हैं। चुनाव सरकार एंव शासन को वैधता प्रदान करते हैं। अत: स्वयं सिद्ध बात हुई कि लोकतंत्र की जड़ मतदाता है।लोकसभा, राज्य की विधानसभाओं, नगरपालिकाओं या पंचायतों के चुनाव भारत का मतदाता प्रत्यक्ष और राज्यसभा, राज्यविधान परिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव मतदाता अप्रत्यक्ष रूप से करता है।भारत के लोकतंत्र का ‘मालिक’ नायक मतदाता है। मैं गर्व से कह सकता हूं, इक्का-दुक्का उदाहरण छोड़ दें तो भारत के लोकतंत्र का वास्ताविक मालिक मतदाता ही है। यहां का मतदाता चुपचाप बूथ पर जाएगा, वोट गिराएगा और घर आ जाएगा।आप लाख पूछो नहीं बताएगा वोट किस को डाला है। मतदाता की विशेषता है, मतदाता की यही विशेषता लोकतंत्र की मूल भावना है।भारत का मतदाता अनेको बार लोकसभा के चुनावों में अपने मतदान का सफल प्रयोग करके आ गया है।मैं मतदाताओं से निवेदन करना चाहूंगा कि निर्भय होकर मतदान करें। भय, पक्षपात, स्वार्थ, लालच या दबाव में मतदान न करें। मतदाता को लोकतंत्र की रक्षा, क्षेत्र के विकास और संविधान-प्रदत्त अधिकारों के लिए मतदान करना है। इसमें दबाव कैसा? भय कैसा? लोकतंत्र स्वतंत्र भाव से चलता है।फिर दान तो लोक कल्याण के लिए किया जाता है या निजी जिन्दगी में मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है।लोकतंत्र में भी मतदान देश और संविधान की रक्षा के लिए किया जाता है। वोट बेखौफ होकर डालिए। दान स्वार्थ भावना से ऊपर उठकर कीजिए। धर्म, जाति, पार्टी, लोभ, लालच मतदान में नहीं आना चाहिए। मतदान स्वतंत्र, वोट मतदाता का निजी अधिकार है। इसमें किसी का भी हस्तक्षेप लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर देगा। भारतवर्ष का लोकतंत्र दुनिया का विशालतम और सफलतम लोकतंत्र है।राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे मतदाता को भ्रष्ट न करें। उसे अपने निजी अधिकार का स्वतंत्र प्रयोग करने दें। प्रतिनिधि जिसने मतदान लिया है, मतदाता से बड़ा नहीं होता है।दान लेने वाला सदैव,सिर झुका कर दान प्राप्त करे। मतदाता पात्र व्यक्ति को ही अपना मतदान करे। दान के महत्व को देने-लेने वाले दोनों समझें।प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा चलाया जाता है। जनता को एक बार मूर्ख बनाया जा सकता है,सदैव नहीं। मतदाता एक मालिक की भूमिका पहले ही निभाता आया है।मतदाता घबराए नहीं। भारत में लोकतंत्र के उगते सूर्य को देखे। आने वाली पीढियो के भविष्य को देखे।मतदाता वोट के महत्व को जाने। एक-एक वोट का महत्व है।कुछ मतदाता सोचते हैं, मेरे एक वोट न डालने से क्या होगा? मैं वोट नहीं डालूंगा तो आसमान तो नहीं गिर पड़ेगा। मैं जोर देकर कहूंगा-अवश्य गिर पड़ेगा। मतदाता के एक वोट पर लोकतंत्र का महल खड़ा है। हमें वोट डालने का यह अधिकार अनेक कुर्बानियों से मिला है। वोट डालो और सभी डालो।सारे कामकाज छोड़ कर वोट डालिए।

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