नई दिल्ली(एचकेपी 24 न्यूज)।इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) ने देश के निर्वाचन प्रणाली में क्रान्ति ला दी है। इसके कारण अब मतों के निरस्त होने का ग्राफ नहीं के करीब पहुंचता जा रहा है। एक समय ऐसा भी था जब पूरे प्रदेश के कुल मतदान का 10 से 12 फीसदी मसलन 18 से 20 लाख वोट निरस्त हो जाते थे।कहा जाता है कि जागरूक नहीं रहने के कारण कई मतदाता अपना मत (मुहर) निर्धारित स्थान की बजाए जहां-तहां लगा देते थे, जिससे वह मत निरस्त हो जाता था। लापरवाही और शिक्षित नहीं होने की वजह से भी भारी संख्या में मत निरस्त हो जाते थे। यही नहीं प्रतिद्वन्दिता की वजह से जानबूझकर या दुर्भावना से भी मतपत्र खराब किए जाते थे जो बाद में निरस्त हो जाता था। तब बड़ी संख्या में ये शिकायतें भी आती थीं कि दल या प्रत्याशी विशेष के लोगों ने अपने पक्ष में बूथों पर कब्जा कर एकतरफा मतदान करा दिया।ईवीएम के निर्वाचन प्रक्रिया में दस्तक देने के साथ ही गड़बड़ियों के अलावा वोट रद्द होने का ग्राफ भी तेजी से नीचे गिरने लगा। दो हजार का दशक शुरू होते ही ईवीएम से मतदान आरंभ हुआ और वोटों के रद्द होने का सिलसिला थमना शुरू हो गया।यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि आयोग ने अस्सी के दशक में ही केरल में प्रयोग के तौर पर ईवीएम से चुनाव कराया लेकिन उसके बाद करीब दो दशक तक मतपत्रों से ही चुनाव कराए गए। बाद में 2000 से इसे देश भर में लागू किया गया। ईवीएम से मतों के निरस्त होने की समस्या तेजी से खत्म होने की ओर अग्रसर है।वर्ष 2015 से निर्वाचन आयोग ने पूरे देश में नोटा सिस्टम लागू किया। इससे पहले नोटा का विकल्प 2013 में देश में हुए कुछ विधानसभा चुनावों में आयोग ने लागू किया था। इस विकल्प से मतदाता वोट तो देना चाहता है पर उसे कोई दल या प्रत्याशी यदि पसन्द नहीं हो तो नोटा (उपर्युक्त में से कोई नहीं) के बटन को विकल्प के रूप में दबा सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में हजारों लोगों ने नोटा का प्रयोग भी किया है।
लोकसभा चुनाव 1989 से 2014 तक निरस्त मत
चुनाव वर्ष निरस्त पोस्टल मतों की संख्या निरस्त ईवीएम के मतों की संख्या
2004 1834 पोस्टल वोट 6621 ईवीएम से वोट प्राप्त नहीं
2009 5888 पोस्टल वोट 22786 ईवीएम से वोट प्राप्त नहीं
2014 10428 पोस्टल वोट 15067 ईवीएम से वोट प्राप्त नहीं
लोकसभा चुनाव 1989 से 2014 तक निरस्त मत
चुनाव वर्ष निरस्त मतों की संख्या
1989 1803451
1991 1587542
1996 866498
1999 737267
पहली बार केरल के चुनाव में हुआ ईवीएम का प्रयोग
वर्ष 1982 में देश में पहली बार प्रयोग के तौर पर केरल के परावुर विधानसभा के 50 मतदान केंद्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। तब वहीं के हारे हुए एक उम्मीदवार ने ईवीएम से चुनाव को कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने फिर से चुनाव कराने के आदेश जारी किए। हालांकि कोर्ट ने ईवीएम से मतदान को गलत नहीं माना।वर्ष 1982 से 1988 तक ईवीएम को लेकर देश में लम्बी बहस चली। तमाम दल इसके पक्ष में थे तो कुछ दल इसकी मुखालफत भी कर रहे थे। वर्ष 1988 में कानून में संशोधन कर तत्कालीन सरकार ने रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट, 1951 में सेक्शन 61 ए जोड़कर चुनाव में वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को आसान बनाया। इसके बाद 90 के दशक में देश में ईवीएम बनना शुरू हुई और प्रारम्भिक रूप में दो राज्यों व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के चुनावों में कुछ विधानसभा क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ। हालांकि समय-समय पर ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों ने शक जाहिर करते हुए हंगामा किया और मतपत्रों के इस्तेमाल की गुहार लगाई।