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नई दिल्ली-क्या है जिनेवा कन्वेंशन जो पाकिस्तान में बनेगा अभिनंदन का सुरक्षा ‘कवच’जिनेवा समझौते के तहत विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान न तो डरा धमका सकता है और न ही अपमानित कर सकता

नई दिल्ली(एचकेपी 24 न्यूज)।भारतीय सीमा में घुस आए पाकिस्तानी विमान के खिलाफ कार्रवाई के दौरान भारतीय वायुसेना का एक मिग 21 दुर्घटनाग्रस्त हुआ है. साथ ही भारत सरकार ने पुष्टि की कि पाकिस्तान ने वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को बंदी बना लिया है. सरकार ने पाकिस्तान से उन्हें जल्द वापस भारत भेजने की मांग की है.

विंग कमांडर अभिनंदन के लिए पाकिस्तान में सुरक्षा कवच का काम करेगी एक अंतरराष्ट्रीय संधि. जिसे हम जेनेवा कन्‍वेंशन या जेनेवा समझौता (Geneva Convention) कहते हैं. किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये समझौता लागू होता है. किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं करने के लिए ये समझौता विवश करता है. आइए जानते हैं कि आखिर यह समझौता है क्या? (ये भी पढ़ें: पायलट अभिनंदन को दुश्मन देश में मिलेंगी ये सुविधाएं, इनकार नहीं कर सकता पाकिस्तान!

राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग देशों के बीच उनके राजनयिकों और नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जेनेवा कनवेंशन अहम हथियार है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर सुबोध कुमार का कहना है कि इस समझौते के तहत युद्धबंदियों को सही सलामत उसके देश को वापस लौटाना होता है.

प्रो. सुबोध का कहना है कि जेनेवा सम्मेलन में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल यानी मसौदे को मंजूरी देते हुए पास किया गया था, जो युद्धबंदियों को अधिकार देते हैं. इसका उद्देश्य युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों को बनाए रखना है. इस समझौते के तहत घायल सैनिक की उचित देखरेख की जाएगी. अमानवीय बर्ताव नहीं किया जाएगा. खाना पीना और जरूरी सभी चीजें दी जाएंगी.

इसके तहत दुश्मन देश में ना तो उन्हें तंग किया जाएगा, न डराया धमकाया जाएगा. अपमानित नहीं किया जाएगा. ना ही मेडिकल सुविधा से वंचित रखा जाएगा. यहां तक कि युद्धबंदी की जाति, धर्म के बारे में नहीं पूछे जाने का प्रावधान है. युद्धबंदी से सिर्फ उसका नाम, सेना में पद और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है.

पहला जेनेवा समझौता 1864 में हुआ था. दूसरा समझौता 1906 और तीसरा 1929 में हुआ. दूसरे वर्ल्ड वार के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी. इसके तहत युद्धबंदियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है. लेकिन युद्धबंदी को लेकर प्रोपेगेंडा नहीं फैलाया जा सकता.

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